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मैं एक लेखिका हूँ। मैंने लेखन के क्षेत्र में विभिन्न रचनायें की हैं, जो ऑनलाइन अलग-अलग प्लेटफॉर्मस पर प्रकाशित हुई हैं। यह ब्लॉग मेरी लिखी शायरियों का छोटा संकलन है। जो कि माँ के लिए कार्ड में कैसे शायरी लिखें विषय पर आधारित है।

इस ब्लॉग में मैंने माँ के लिए कार्ड में कैसे शायरी लिखें से सम्बंधित रचनायें की हैं। आशा करती हूँ आपको पसंद आएँगी।

इन्हें भी पढें :- माँ के लिए स्टेटस में कैसे कोट्स लिखें ?

माँ के लिए कार्ड में कैसे शायरी लिखें

माँ के लिए कार्ड में कैसे शायरी लिखें – सुनते ही हमारे मन में असंख्य भावनाएं उमड़ने लगतीं हैं क्योंकि हम उन्हें एहसास करना चाहतें है कि वो कितनी ख़ास हैं।

माँ के लिए कार्ड में लिखी शायरियां बहुत ख़ास होती हैं क्योंकि यह हमारे प्रेम की परिचायक होती हैं। यदि आप भी जानना चाहतें हैं कि माँ के लिए कार्ड में कैसे शायरी लिखें तो आपको ये ब्लॉग ज़रूर पढ़ना चाहिए।

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माँ की फ़िक्र के लिए कैसे शायरी लिखें?

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फ़िक्र के लिए शायरी

फ़िक्र में घुलती है,
नम ओंस सी जानिब;
माँ के पयाम होते हैं,
मुहब्बत में बंधे हुए।

 

मैं सोचता हूँ अक्सर,
दूर चला जाऊ;
माँ की फ़िक्र की ख़ातिर,
मैं जा भी नहीं सकता।

 

माँ की फ़िक्र के,
दो निवाले ख़ास थे;
अब दम भर के भी खाऊँ,
तो जी नहीं भरता। 

 

सोता हूँ बेफिक्र,
सुबह तलक मैं;
माँ है न,
जो फ़िक्र से उठाने आएगी।

 

फ़िक्र में हैं माँ की,
दुनियावी शोहरतें;
मिल जाएगी किसी रोज़,
उनको यकीन है।

 

दरबदर हूँ फिरता,
बेजान परिंदा;
मैं फ़िक्र में माँ की,
उड़ता ही नहीं हूँ।

 

यूँ पूछो न मुझसे,
मेरे दिल का रास्ता;
बस फ़िक्र मेरी माँ की,
बस्ती है मुद्दतन।

 

बह जायेगी यूं ही,
बरखा बहार भी;
तरसेगी मेरी माँ,
फ़िक्र में इस बार भी।

 

शामिल न करो मुझको,
क़ाफ़िर-ए-फेहरिस्त में;
मैं फ़िक्र में हूँ माँ की,
वजूद के लिए।

 

जी चाहता है रखू,
क़दमों तले दुनिया;
रुक जाता हूँ ये सोच कर,
माँ फ़िक्र करेंगी।

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माँ की डांट के लिए कैसे शायरी लिखें?

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डांट के लिए शायरी

पहरे पे बैठें हैं,
दुनियावी दावेदार;
माँ डाँटेगी मुझे,
घर जल्दी जाने दो।

 

माँ की डांट सा,
मीठा न मिल सका;
हर हर्फ़ चखा मैंने,
हासिल के वास्ते।

 

दुनिया के दाग़ को,
छिपा लेगी खुद में;
मैं डरता हूँ तो सिर्फ,
अपनी माँ की डांट से।

 

ना मिल सका सुकून,
ज़माने में दौड़कर;
मैं हर जगह भटका,
मां की डांट के लिए।

 

वक्त के ज़ालिम,
पेचों में हूं फंसा;
कैसे कहूं कि मां,
डांटेगी मुझे।

 

डांट के मुझको,
सुकून है कब मिला;
रात भर जागेगी मां,
मेरी ही फिक्र में।

 

ज़रूरत ने मुझको,
कोसों दूर ला दिया;
आज वापसी में मुझको,
मां की डांट याद आई।

 

अहले वफ़ा के कोई,
तराजू से तोलिए;
मेरी मां की डांट सा,
वज़नदार ना मिलेगा।

 

दुनिया की अमीरी,
मुझको न सिखाओ;
उसके लिए मेरी मां,
एक डांट काफी है।

 

कुछ ना बदल सका,
मेरे अंदर का फ़लसफ़ा;
हर रोज़ मां की डांट,
मेरे हिस्से में आई है।

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माँ के ख़्वाबों के लिए कैसे शायरी लिखें?

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ख़्वाबों के लिए शायरी

अश्कों में बहे उसके,
ख्वाबों के सिलसिले;
अपनों के वास्ते,
मां रोई बहुत है।

 

हर दाग़ को छुपाना,
है सीख लिया मां ने;
ख्वाबों को जब से,
खुद के तोड़ना सीखा।

 

ख़्वाब है फ़िज़ूल देखना,
अक्सर यही सुना;
क्या मां की आंखों को,
इतना भी हक नहीं।

 

ख्वाबों के परिंदे,
लौटे ना बेहया;
एक मां ने इंतजार में,
ज़िंदगी गुज़ार दी।

 

पूरा करूंगी मैं,
ख़्वाब उनके सभी;
सबके जैसी घुटकर,
जिएंगी फिर मां नहीं।

 

मां के ख़्वाब में,
शहज़ाद मैं सही;
इसे बरक़रार रखना,
मेरा ही फ़र्ज़ है।

 

मज़बूत है जड़ें,
मां के ख़्वाब की;
इन्हें तोड़ना,
दुनिया के बस की बात नहीं है।

 

ख़्वाबों का काफिला,
लौटेगा किसी रोज़;
पनाह मिलेगी जब,
मां को भरोसे की।

 

मां के ख़्वाब को,
तराशा नहीं किसी ने;
सब पूछते रहे,
तू कौन है-तू कौन है।

 

ख़्वाब हुए माँ के,
बुज़ुर्ग उम्र से;
इस सोच से कभी,
वो खुल के जीए नहीं।

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माँ के वजूद के लिए कैसे शायरी लिखें?

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वजूद के लिए शायरी

सरपरस्ती का वजूद,
इख्तियार कर;
करना है तो,
मेरी मां जैसा मुझे प्यार कर।

 

वजूद से मुकम्मल,
हुआ ना वास्ता;
मैं अपनी मां का लाडला,
और मां का ही रहा।

 

कहने को फलसफे,
दुनिया के गर सुनो;
मां के वजूद को भी,
ना बख़्शते है व़ो।

 

वजूद आज़ाद करो,
मां का है जो क़ैद;
रुख़सती का मुझसे,
ना कोई सबूत मांगना।

 

मां के वजूद पर,
जो उंगलियां उठी;
बह जाएंगे सभी,
दरियाई मनसूबे।

 

मजमून न पूछो,
मेरे वजूद का;
मां से है सब मिला,
हूबहू मुझे।

 

निगारी ख़ास-ओ-आम,
ना मिल सकेगी;
मेरी मां के वजूद-सा,
तौक़ीर नहीं है।

 

हर शौक़ मुझे अता हुआ,
अपने गुरूर में;
मां के वजूद से,
जब तक अंजान था मैं।

 

मां के वजूद पे,
ठहरी है रौशनी;
पूछो ना कि ज़िंदगी में,
उजाला है कौन लाया।

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माँ के प्यार के लिए कैसे शायरी लिखें?

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प्यार के लिए शायरी

मेरे ख़ुलूस पर,
रुकती न रहमतें;
दिन-रात शोर करते,
मां के प्यार के लिए।

 

रखती है रौनकें,
मेरे सिरहाने पर;
मां मेरी ख्वाबों को,
पहचान है देती।

 

फलसफे दुनिया के,
अधूरे ही रहेंगे;
एक मां का प्यार ही,
जो पूरा है हुआ।

 

ठोकरों में मिलते,
कमियों के ज़ख्म हैं;
मुझको जहां में बस,
मेरी मां है चाहती।

 

पहुंचेंगे मेरे बाद भी,
तानों के परिंदे;
मेरी मां समेट लेगी,
सारे दर्दो-ग़म।

 

रूठी रवायतें,
मसरूफियत की मुझसे;
मेरी मां न रूठे मुझसे,
बस यह दुआ रहेगी।

 

हर एक खनक पे,
पायल सी है बजती;
मां की नजर भी कोई,
कभी उतारा कीजिए।

 

सहराओं में भी बहती,
मेरी कश्ती मालिकान;
मां के प्यार का,
ताबीज़ है मुझ पर।

 

ना हो सका ज़माना,
मेरे टुकड़ों पे पल कर;
एक मां मेरी थी,
वो मेरी ही रही।

 

पालेगा क्या औलाद को,
दरख़्तों के दरमियां;
मां का प्यार तो चाहिए,
पनपने के लिए।

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माँ के इमोशंस के लिए कैसे शायरी लिखें?

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इमोशंस के लिए शायरी

मां रोकती है मुझको,
तकरीर-ए-हर्फ से;
कोई समझाओं इन्हें,
मैं बेगुनाह हूं।

 

बहलाए मेरी मां को,
तरकीब मुझे ला दो;
मेरी हर चोट पे,
वो रोती बहुत है।

 

फ़लसफ़ा न समझा,
ज़माने गुज़र गए;
मैं मेरी मां की निशानी में आज भी,
उतनी ही चमक है।

 

दहलीज़ लांग दी,
बरसों बरस पहले;
वो आखरी झलक मां की,
भूला नहीं हूं मैं।

 

नज़रों से झलकता है,
अश्कों का जो सैलाब;
मेरी मां की इब्तिदा में,
क्यों उतरता है बार-बार।

 

देखा है तुमने,
मालिका वजूद दोस्त;
मेरी मां को देखने से,
तुमको यक़ीन होगा।

 

हसरतें वाक़िफ हैं,
मेरे इत्मिनान से;
पहचान जाते हैं,
मेरी मां का नूर है।

 

मिला के जब,
औक़ात से अमीर ही मिला;
मेरी मां का मुफ़्त प्यार,
मुझे बेशुमार मिला।

 

रहती है फुर्सतों में,
मां की अदायगी;
जिस दिन मैं रूठ जाऊं,
दिखाती है रूआब।

 

समझाऊं कैसे मां को,
विदा का वक्त आ गया;
यूं रीत निभानें की,
मैंने सौ दफ़ा सुनी।

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थैंक्यू कहने के लिए कैसे शायरी लिखें?

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थैंक्यू कहने के लिए शायरी

शुकरान हुआ मालिक़,
अपने वजूद से;
मेरे नसीब में,
मुझको मां जो है मिली।

 

तुलना नहीं उसकी,
वो सिर्फ़ एक है;
जिस रूप में देखूं,
मां लगती खूब है।

 

ज़िंदगी के तोहफे में,
मिल गई खुशियां;
मुकम्मल हुई वो तब,
जब मां मुझे मा मिली।

 

मां जैसा ना होगा,
शर्त ना रखो दोस्त;
बेमतलबी से वास्ता,
तुम कर सकोगे खुद।

 

रोशनी में आमदा का,
यही हश्र हुआ;
जो मां का ना हुआ,
उसका कोई ना रहा।

 

मां से ही मुमकिन,
घर की सभी खुशियां;
चाहें जिस भी नाम से,
तुम उसको पुकारो।

 

कुमकुम को लगा पांव में,
मां जब भी आई है;
दुनिया की रौनकें,
घर में मुस्कुराई हैं।

 

हैं फासले बहुत,
अपनों के बीच में;
क्यों सीख नहीं पाते वो,
मां जैसी सादगी।

 

निश्चल निर्मल मनमोही है,
सबसे सुंदर संजोई है;
ना छल कपट की एक लकीर,
मां ने मेरी किस्मत में पिरोई है।

 

बीच भंवर न फंस जाना,
पड़े विपदा तो ना घबराना;
मां का मन में ध्यान लिए,
मां जैसे तुम ख़ुद बन जाना।

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दुआओं के लिए कैसे शायरी लिखें?

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माँ की दुआओं के लिए कैसे शायरी लिखें?

मां की दुआ में किस्मतें,
मुझको अता हुईं;
आसमां पर अब,
मेरा भी नाम होगा।

 

दुआएं जब भी आसमां में,
मुस्कुराई हैं;
मां की सबसे पहले मुकम्मल,
हो आई हैं।

 

पहुंचे न कभी मुझ तक,
एक गुरुर भी;
नाजों से पाला मुझको,
मां की दुआओं ने।

 

ना हो सका रफीक़,
पाक़ीज़गी का शायर;
मां की दुआओं पर,
शायरी ना लिख सका।

 

रखतें हैं चरागों में,
फैली हुई ज़मी;
मां की दुआओं से,
एहतराम है।

 

ख़्वाहिशें मक़बूल,
ज़र्द-ए-सिफ्त में;
कायल हूं मैं,
मां की दुआओं का।

 

मां की दुआओं से,
पाकीज़ क्या होगा;
उसको दहन में रखना,
इख्तियार तुम।

 

ग़र फ़ासलों में मुमक़िन,
होते नहीं रिश्ते;
तो मैं भी न जी पाता,
मां की दुआओं से।

 

ना मिटा सके कभी,
ज़माने की कोशिशें;
मैं मां की दुआ हूं,
क्या यह मेरा कुसूर है।

 

पोशाकें रंग-बिरंगी,
पहनी हैं मुसलसल;
मां की दुआएं आशना में,
सजे के आईं हैं।

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याद के लिए कैसे शायरी लिखें?

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माँ की याद के लिए कैसे शायरी लिखें?

इक तिनके से मेरी ज़िंदगी,
ताबीर-सी सजी;
है याद मुझे मां ने,
पुचकारते हुए कहा।

 

लौट आऊंगा,
दहलीज़ पे अपनी;
मेरी मां की याद,
खुद-ब-खुद मुझे खींच लाएगी।

 

आ गए है वास्ले,
दिलों में जो गहरे;
अब आती है मुझे याद,
अपनी मां की पल-पल।

 

मुश्किल में न बड़ा हाथ,
वो किस काम का है;
आज मां की बात याद आई,
तू बस नाम का है।

 

पहचान से जुड़ी,
हसरतें मेरी,;
जब मुझको ग़म हुआ,
मां की है याद आई।

 

मिलने की तारीख़ ये भी,
दिलों में मौजूद रहेगी;
गहराएगी हर रोज़,
मां की याद की तरह।

 

अपनी खुशी के पीछे,
दौड़ता रहा;
थक कर रुका हूं आज;
तो मां याद बहुत आई।

 

कट जाएंगे ये दिन भी,
लौटूंगा आप तक;
फ़िक्र न करना मां,
बराबर से याद हो।

 

तफ्तीश ना करना,
वाशिंद वस्ल के;
मेरी मां की याद में,
आए हैं ये आंसू।

 

सारी रात बीत गई,
यूं ही नम बिस्तर पर;
मैं जितना रोया,
मां उतनी याद आई।

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परछाई के लिए कैसे शायरी लिखें?

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माँ की परछाई के लिए कैसे शायरी लिखें?

रुख़ पर है रोशनी,
सवेरे की ही तरह;
परछाई में मां की,
मैंने देखा है खुद को।

 

परछाइयों से मां की,
वाक़िफ हूं मैं ए-दोस्त;
जब भी पड़ी है मुझ पर,
ज़िंदगी सवार दी।

 

ना हो सके मालिक़,
मेरे सरताज हर्फ के;
वो डर गए मुझमें,
मेरी मां की परछाई देखकर।

 

परछाई से रखेंगे,
अब यूं ही वास्ता;
लेटेंगे मोहब्बत से,
अपनी मां की गोद में।

 

बेफ़िक्र हूं तो क्या,
यह भी गुनाह है;
परछाइयों में मां की,
मिलता मुझे सुकून।

 

कयास लगाते हैं,
दुनिया के दावेदार;
यह क्यों नहीं कहते,
मां सा कोई नहीं।

 

रातों को आसमां में,
चमकते हैं यूं सितारे;
जैसे मां की,
परछाई में बच्चे।

 

मिलते नहीं हक़दार,
पहचान के मालिक़;
परछाइयों में मां की,
मैं ढूंढता हूं खुद को।

 

बख्श दो मुझे,
कायदों से न रौंदों;
परछाई मेरी मां की,
आज़ादी से जीने दो।

 

ख़ामोश हूं मैं,
अर्से से खुलूस के लिए;
परछाई मेरी मां की,
वापस मुझे दे दो।

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आँचल के लिए कैसे शायरी लिखें?

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माँ के आँचल के लिए कैसे शायरी लिखें?

दुनिया में कहीं रहूं,
न मुझको सुकून आता;
मेरी मां का आंचल,
मेरे लिए काफ़ी है।

 

ना दिलकशी लगे,
दुनिया के नामों जब्त;
मुझको तो बस अपनी,
मां का आंचल चाहिए।

 

पोशाक जो भी हो,
फ़र्क नहीं पड़ता;
मां के आंचल की,
खासियत यही है।

 

अकेले ही काटी मैंने,
सारी मुश्किलें;
ताकि मां के आंचल में,
कोई दाग़ न लगे।

 

कहकहे दुनिया के,
सुनता हूं मैं अक्सर;
चुप हूं बस अपनी मां के,
आंचल को देखकर।

 

तुमको ना लगे चोट,
यह वादा सदा रहेगा;
मेरी मां का आंचल,
यूं ही बेदाग रहेगा ।

 

परेशानियों में दुनिया,
कब साथ देती है;
एक मां ही है जो आंचल में,
पनाह देती है।

 

मां के आंचल की छाया,
में पनाह मिली मुझको;
मैं खुशनसीब हूं,
आप जैसी मां मिली मुझको।

 

ग़र हो न सका उसका,
तो खुद का भी ना रहेगा;
आंचल में मां के होती है,
दुनिया बसी हुई।

 

हो ख़ास हर शख़्स,
ममता का नूर बरसे;
मां के आंचल को,
कभी कोई भी ना तरसे।

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हुनर के लिए कैसे शायरी लिखें?

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माँ के हुनर के लिए कैसे शायरी लिखें?

राब्ता अलग है,
पेशानी का मेरे;
खिलता तभी है,
जब मेरी मां चूम ले।

 

मन में तूफान रखना,
होठों से मुस्कुराना;
मां को है खूब आता,
हुनर को संभालना।

 

मां के हुनर कि तुम,
क्या तफ़्तीश करोगे;
जिसको अपना मान लें,
ममता लुटाती है।

 

माँ के हुनर का कोई भी,
तोड़ नहीं है;
ख़ुद भूखी रहकर,
बच्चों का पेट भरती।

 

हैं ख़्वाब शाइस्ता,
वजूद में शामिल;
माँ के हुनर को पलना,
आसान नहीं है।

 

रखती है जिस राह में,
माँ अपने कदम;
उस रह में कामयाबी,
ख़ुद-ब-ख़ुद पनपती।

 

शाखों के परिंदे,
घोसलों में लौटेंगे;
है माँ को यकीं अपने,
पाकीज़ हुनर पे।

 

महलों में हो फैली,
या घरौंदो में हो मिली;
माँ जब भी मिली मुझको,
माँ के हुनर के साथ ही मिली।

 

दील तोड़ने की बात,
मुझसे न करो दोस्त;
मेरी माँ को आता है,
हर क़तरा मेरा जोड़ना।

 

आज़माइशे हुनर की,
जब ख़त्म होयँगी;
फिर वह से शुरू होगा,
मेरी माँ का आशियाँ।

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आशीर्वाद के लिए कैसे शायरी लिखें?

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माँ के लिए कार्ड में कैसे शायरी लिखें

मुझपे नहीं टिकती,
तेरी परेशानियाँ;
माँ का आशीर्वाद,
साथ रहता है हर वक़्त।

 

पहचान का मेरी न यूं,
हिसाब लीजिये;
अपनी माँ का लाडला हूँ,
बस इतना जान लीजिये।

 

दुनिया की रवायत में,
बांधों न मुझे दोस्त;
मैं माँ के डैम से हूँ,
इस जहां में आया।

 

शोख़ी जो मेरी शक़्ल पे,
निहारते हो यूं;
ये माँ का आशीर्वाद है,
जो मुझको है मिला।

 

कागज़ के चंद टुकड़ों में,
नापों के मुझे क्या;
माँ नाम मेरे कर दो,
वसीहत के बदले में।

 

पहचानता हैं मुझको,
मुद्दत से ये ज़माना;
डरता हूँ माँ न देख ले,
मेरे ज़ख्म के निशाँ।

 

फुर्सत में कभी ख़्वाब,
हमको भी आये थे;
पेशानी को चूमा था,
जब सादगी से माँ ने।

 

कैसे रखतें है फ़ासले,
आपनो के दरमियां;
पल भर भी नहीं कटता,
मुझसे माँ के बिना।

 

हैं शोख़ बहुत दुनिया में,
अमीरी के रास्ते;
जब भी क़दम बढ़ाऊं,
माँ रोक लेती है।

 

माँ के आशीर्वाद से,
टल जाएँ मुश्किलें;
मेरे साथ रहे सदा,
साये की तरह।

अगर आपको शायरियां अच्छी लगीं तो कमेंट सेक्शन में मुझे ज़रूर बताएं। कौन सी शायरी ने आपको अपनी माँ से जोड़ा, हमसे साझा करें। मुझे पूरा यकीन है कि अब आप जान गए होंगें कि माँ के लिए कार्ड में कैसे शायरी लिखें।